महाकाव्य 'मेघदूत' के रचयिता कालिदास 'मूर्ख' नाम से प्रसिद्ध हैं, जिनका विवाह सुंदर व महान गुणवती विघोतमा से हुआ था। उन महाकवि से राजा विक्रमादित्य ने एक दिन अपने दरबार में पूछा, 'क्या कारण है, आपका शरीर मन और बुद्धी के अनुरूप् नहीं है?' इसके उत्तर में कालिदास ने अगले दिन दरबार में सेवक से दो घड़ों में पीने का पानी लाने को कहा। वह जल से भरा एक स्वर्ण निर्मित घड़ा और दूसरा मिट्टी का घड़ा ले आया। अब महाकवि ने राजा से विनयपूर्वक पूछा
, 'महाराज!' आप कौनसे घड़े का जल पीना पसंद करेंगे?' विक्रमादित्य ने कहा, 'कवि महोदय, यह भी कोई पूछने की बात है? इस ज्येष्ठ मास की तपन में सबको मिट्टी के घड़े का ही जल भाता है।' कालिदास मुस्कराकर बोले, 'तब तो महाराज, आपने अपने प्रश्न का उत्तर स्वयंम ही दे दिया।' राजा समझ गए कि जिस प्रकार जल की शीतलता बर्तन की सुंदरता पर निर्भर नहीं करती, उसी प्रकार मन-बुद्धी का सौंदिर्य तन की सुंदरता से नहीं आँका जाता।
यह है मन का सौंर्दय, जो मनुष्य को महान् बना देता है और उसका सर्वत्र सम्मान होता है।
"The mind in its own place and in self can make a heaven of hell, a hell of heaven."
, 'महाराज!' आप कौनसे घड़े का जल पीना पसंद करेंगे?' विक्रमादित्य ने कहा, 'कवि महोदय, यह भी कोई पूछने की बात है? इस ज्येष्ठ मास की तपन में सबको मिट्टी के घड़े का ही जल भाता है।' कालिदास मुस्कराकर बोले, 'तब तो महाराज, आपने अपने प्रश्न का उत्तर स्वयंम ही दे दिया।' राजा समझ गए कि जिस प्रकार जल की शीतलता बर्तन की सुंदरता पर निर्भर नहीं करती, उसी प्रकार मन-बुद्धी का सौंदिर्य तन की सुंदरता से नहीं आँका जाता।
यह है मन का सौंर्दय, जो मनुष्य को महान् बना देता है और उसका सर्वत्र सम्मान होता है।
"The mind in its own place and in self can make a heaven of hell, a hell of heaven."
-John Milton (1608-74)
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