Akbar Birbal Short Stories in Hindi (अकबर बीरबल की कहानी)


akbar birbal stories in hindi
आज व्यक्ति की जिन्दगी इतनी व्यस्त हो चुकी है कि हंसने-मुस्कराने की बात तो वह भूल ही चुका है। टी. वी. आदि के ऊबा देने वाले कार्यक्रमों के प्रति भी वह उदासीन हो चुका है और चाहता है कि कुछ नया मनोंरंजन मिले जो लीक से हटकर हो। अपने ऐसे ही उदासीन पाठकों के लिए हम यहां अकबर-बीरबल की नोकझोंक (Akbar Birbal Short Stories in Hindi)की कहानियों का संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं।

 मुगलिया सल्तनत के महान सम्राट अकबर और उनके नौ रत्नों में से एक बीरबल की नोकझोंक....बादशाह अकबर द्वारा बीरबल को यदा-कदा मूर्ख बनाने का प्रयास करने और बीरबल द्वारा अपनी तेज बुद्धी द्वारा बादशाह को लाजवाब कर देने के कई रोचक व हास्यपूर्ण किस्से यहां प्रस्तुत किए गए हैं। हमारा विश्वास है कि एक-एक किस्सा आपको कई दिनों तक गुदगुदाता रहेगा।

Akbar Birbal Short Stories in Hindi (अकबर बीरबल की कहानी)

 

  1.  पूर्णिमा का चांद

  2.  तोता तो मर गया

  3.  अंधे अधिक हैं या आंख वाले?

  4.  पृथ्वी का बीच

  5.  समझ का हेर-फेर

  6.  सांवली अप्सरा और गोरी चुड़ैल

  7. श्रेष्ठ जल 

  8. लेकिन मैं भी तो गया ही नहीं

  9. आगरा में कितने कौवे?

  10. सबसे बड़ा हथियार 'औसान'

  11. पढ़ा-लिखा गधा

  12. जल्दी हजम हो जाएगा

  13. पहले शाह बन जाइए

  14. कुएं में उतर जाता है

  15. ऊपर क्या है?

 Akbar-Birbal Story #1

आयु बढ़ाने वाला पेड़


एक बार तुर्किस्तान के बादशाह को अकबर की बुद्धी की परीक्षा के लेने का विचार हुआ। उसने एक एलची को पत्र देकर सिपाहियों के साथ दिल्ली भेजा। पत्र का मजमून कुछ इस प्रकार था- 'अकबरशाह! मुझे सुनने में आया है कि आपके भारततवर्ष में कोई ऐसा पेड़ पैदा होता है जिसके पत्ते खाने से मनुष्य की आयु बढ़ जाती है। यदि यह बात सच्ची है तो मेरे लिए उस पेड़ के थोड़े पत्ते अवश्य भिजवाएं.'

बादशाह उस पत्र को पढ़कर विचारमग्न हो गए। फिर कुछ देर तक बीरबल से राय मिलाकर उन्होंने सिपाहियों सहित उस एलची को कैद कर एक सुदृढ़ किले में बेद करवा दिया। इस प्रकार कैद हुए उनको कई दिन बीत गए तो बादशाह अकबर बीरबल को लेकर उन कैदियों को देखने गए।

बादशाह को देखकर उनको अपने मुक्त होने की आशा हुई, परन्तु यह बात निर्मूल थी। बादशाह उनके पास पहुंचकर बोले - 'तुम्हारा बादशाह जिस वस्तु को चाहता है, वह मैं तब तक उसे नहीं दे सकूंगा जब तक कि इस सुदृढ़ किले की एक-दो ईट न ढह जाए, उसी वक्त तुम लोग आजाद किए जाओगे। खाने-पीने की तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी। मैंने उसका यथाचित प्रबन्ध करा दिया है।' इतना कहकर बादशाह चले गए, परन्तु कैदियों की चिंता और बढ़ गई। वे अपने मुक्त होने के उपाय सोचने लगे। उनको अपने स्व्देश के सुखों का स्मरण कर बड़ा दुख होता था।

वे कुछ देर तक इसी चिंता में डूबे रहे। अंत में वे इश्वर की वन्दना करने लगे- 'हे भबवान! क्या हम इस बन्धन से मुक्त नहीं किए जाएंगे? क्या हमारा जन्म इस किले में बन्द रहकर कष्ट भोगने के लिए हुआ है? आप तो दीनानाथ हैं, अपना नाम याद कर हम असहायों की भी सुध लीजिए।‘ इस प्रकार वे नित्य प्राथर्ना करने लगे।

ईश्वर की दयातलुता प्रसिद्ध है। एक दिन बड़े जोरों का भूकम्प आया और किले का कुछ भाग भूकम्प के कारण धराशायी हो गया। सामने का पर्वत भी टूटकर चकनाचूर हो गया। इस घटना के पश्चात एलची ने बादशाह के पास किला टूटने की सूचना भेजी।

बादशाह को अपनी कही हुई बात याद आ गई। इसलिए उस एलची को उसके साथियों सहित दरबार में बुलाकर बोले - 'आपको अपने बादशाह का आशय बिदित होगा और अब उसका उत्तर भी तुमने समझ लिया है। यदि न समझा हो तो सुनो, मैं उसे और भी स्पष्ट किए देता हूं।' देखो, तुम लोग गणना में केवल सौ हो और तुम्हारी आह से ऐसा सुदृढ़ किला ढह गया, फिर जहां हजारों मनुष्यों पर अत्याचार हो रहा हो, वहां के बादशाह की आयु कैसे बढ़ेगी? उसकी तो आयु घटती ही चली जाएगी और लोगों की आह से उसका शीघ्र ही पतन हो जाएगा। हमारे राज्य में अत्याचार नहीं होता, गरीब प्रजा पर अत्याचार न करना और भलीभांति पोष्ण करना ही आयुवर्धक वृक्ष है। बाकी सारी बातें मिथ्या हैं।‘




इस प्रकार समझा-बुझाकर बादशाह ने उस एलची को उसके साथियों सहित स्वदेश लौट जाने की आज्ञा दी और उनका राह-खर्च भी दिया। उन्होंने तुर्किस्तान में पहुंचकर यहां की सारी बातें अपने बादशाह को समझाईं। अकबर की शिक्षा लेकर बादशाह दरबारियों सहित उनकी भूरि-भुरि प्रशंसा करने लगा।


Akbar-Birbal Story #2

सबसे बड़ी 'गर्ज़'


अकबर बादशाह विनोदी स्वभाव के थे। उन्हें पहेलियां बुझाने का बड़ा शौक था। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान और बुद्धिमान भी थे। लेकिन अकबर की अधितर पहेलियों का उत्तर बीरबल ही देते थे। यूं कहिए कि बीरबल ही अकबर की पहेलियों का उत्तर दे पाते थे, इसलिए अकबर बादशाह उनसे प्रसन्न रहते थे।

एक दिन की बात है कि बीरबल दरबार में उपस्थित नहीं थे। बीरबल की अनुपस्थिति में दूसरे सभासद बीरबल के वीषय में अकबर के कान भर रहे थे। उनकी तरह-तरह से बुराई कर रहे थे। अकबर बादशाह को यह सब अच्छा नहीं लगा। कारण था कि वे बीरबल को बहुत चाहते थे, उन्हें दिल से प्यार करते थे। अतः बादशाह ने अपने सभासदों से कहा- ‘तुम लोग ख्वामखाह बीरबल की बुराइयां कर रहे हो। वास्तव में बीरबल तुम लोगों से कहीं अधिक चतुर व बुद्धिमान हैं।‘

टकबर के ऐसा हने पर वे लोग कहने लगे - ‘‘बादशाह सलामत! टाप वास्तव में बीरबल को बहुत चाहते हैं, हम लोगों से ज्यादा प्यार करते हैं। इस तरह से आपने एक हिंदु को सिर चढ़ा रखा है।‘‘

डसी दिन जब सभा समाप्त होने का समय आया तो अकबर बादशाह ने अपने उन चार सभासदों से कहा - ‘देखो, आज बीरबल तो यहां नहीं, मुझे अपने एक सवाल का जवाब चाहिए। तुम चारों मेरे प्रश्न का उत्तर दो और यदि तुम लोगों ने मेरे प्रश्न का सही-सही उत्तर नहीं दिया तो मैं तुम चारों को फांसी पर चढ़वा दूंगा।‘

बादशाह की बात सुनकर वे चारों घबरा उठे। उनमें से एक ने हिम्मत करके कहा - ‘प्रश्न पूछिए बादशाह सलामत!‘

बादशाह ने पूछा - ‘संसार में सबसे बड़ी चीज़ क्या है?‘

अकबर का प्रश्न सुनकर चारों चुप। उनको समझ में सवाल का उत्तर नहीं आया। कुछ देर बाद उनमें से एक ने कहा - ‘खुदा की खुदाई सबसे बड़ी है।‘

दूसरे ने कहा - ‘बादशाह सलामत की सल्तनत बड़ी है।‘

उनके बेतुके उत्तर सुनकर बादशाह ने कहा - ‘अच्छी तरह सोच-समझकर उत्तर दो, वरना मैं कह चुका हूं कि तुम लोगों को फांसी लगवा दूंगा।‘

तीसरे ने डरते-डरते कहा - ‘बादशाह सलामत! ळमें कुछ दिनों की मोहलत दी जाए।‘

बादशाह ने कहा- ‘इसमें मुझे कोई एतराज नहीं है, मैं तुम लोगों को एक सप्ताह का समय देता हूं।‘

वे चारों सभा से मुंह लटकाए बाहर निकले। उनके चेहरों पर मुर्दनगी छा गई। चारों ही फांसी के नाम से पीले पड़ गए। छः दिन बीत गए लेकिन उन्हें कोई उत्तर न सूझ सका।

तब उन चारों ने आपस में सलाह की कि इस प्रश्न का उत्तर केवल बीरबल ही बता सकता है। इस परेशानी से हमें वही उबार सकता है। यह निश्चय करके वे चारों बीरबल के पास पहुंचे गए। उन्होंने बीरबल को पूरी घटना कह सुनाई और हाथ जोड़कर उनसे विनती की कि वह उनके प्रश्न का उत्तर बता दें।

बीरबल ने उनका प्रश्न सुनकर मुस्करा कर कहा - ‘मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है।‘

‘‘आप एक शर्त की बात करते हैं, हमें आपकी हजार शर्तें मंजूर हैं। बताइए क्या शर्त है?‘‘

तब बीरबल ने उनको अपनी शर्त बताते हुए कहा - ‘तुम चारों अपने कंधों पर मेरी चारपाई रखकर सभा महल तक ले चलोगे। इसके साथ ही तुम में से एक मेरा हुक्का पकड़ेगा, जिसे मैं पीता हुआ चलूंगा। एक मेरी जूतियां लेकर चलेगा।‘

अगर अन्य किसी समय पर बीरबल उनको यह सब करने के लिए कहते तो शायद वे ऐसा कभी न करते। लेकिन अब जब उन्हें फांसी लगने का डर था तो वे तुरन्त ही उनकी बात मानने को तैयार हो गए। उन्होंने वैसा ही किया। वे चारों अपने कंधों पर बीरबल की चारपाई उठाए, उनका हुक्का और जूतियां उठाए चल दिए।

बीरबल हुक्का पीते हुए चले जा रहे थे। रास्ते में लोग आश्चर्य से इस अजीब मंजर को देख रहे थे। उन्होंने जाकर बीरबल की चारपाई को सभा के मध्य रख दिया। बीरबल ने चारपाई से उतर कर कहा - ‘बादशाह सलामत! टापको अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। संसार में सबसे बड़ी चीज ‘गर्ज‘ है।‘

अकबर बादशाह मुस्करा उठे। दरअसल वे उन चारों को सबक सिखाना चाहते थे।


 Akbar-Birbal Story #3


 तीन रूपये: तीन सवाल


एक दिन अकबर बादशाह के दरबारियों ने बादशाह से शिकायत की - 'हुजूर! आप सब प्रकार के कार्य बीरबल को ही सौंप देते हैं, क्या हम कुछ भी नहीं कर सकते?'

बादशाह ने कहा - 'ठीक है....मैं अभी इसका फैसला कर देता हूं।'

उन्होंने एक दरबारी को बुलाया और उससे कहा - 'मैं तुम्हें तीन रूपये देता हूं। इनकी तीन चीजें लाओं। हर एक की कीमत एक रूपया होनी चाहिए। पहली चीज यहां की होनी चाहिए। दूसरी चीज वहां की होनी चाहिए। तीसरी चीज न यहां की हो, न वहां की हो।'

दरबारी तुरन्त बाजार गया। दुकानदार के पास जाकर उसने उससे ये तीनों चीजें मांगी। दुकानदार उसकी बात सुनकर हंसने लगा और बोला - 'ये चीजें कहीं भी नहीं मिल सकतीं।'

उन तीन चीजों को दरबारी ने अनेक दुकानों पर खोजा। लेकिन जब उसे तीनों चीजें कहीं भी नहीं मिलीं तो निराश होकर दरबार में लौट आया। उसने बादशाह अकबर को आकर बताया- ‘ये तीनों चीजें किसी भी कीमत पर, कहीं भी नहीं मिल सकतीं। अगर बीरबल ला सकें तो जानेंगे।'

अकबर बादशाह ने बीरबल को बुलाया और कहा कि जाओ ये तीनों चीजें लेकर आओ।

बीरबल ने कहा - 'हुजूर! कल तक ये चीजें अवश्य आपकी सेवा में हाजिर कर दूंगा।'

अगले दिन जैसे ही बीरबल दरबार में आए तो बादशाह अकबर ने पहले दिन वाली बात को याद दिलाते हुए पुछा - 'क्यों, क्या हमारी चीजें ले आए?'

बीरबल ने फौरन कहा - 'जी हां....मैंने पहला रूपया एक फकीर को दे दिया जो वहां से भगवान के पास जा पहुंचा। दूसरा रूपया मैंने मिठाई में खर्च किया जो यहां काम आ गया और तीसरे रूपये का मैंने जुआ खेल लिया जो कि न यहं काम आएगा, न वहां अर्थात परलोक में।'

उनकी बात सुनकर सभी चकित रह गए और अकबर ने बीरबल को बहुत सा ईनाम दिया।


Akbar-Birbal #4


मूर्ख के सामने चुप रहना ही श्रेयस्कर है


एक बार अकबर बादशाह के उस्ताद पीर साहब मक्का से चलकर दिल्ली आए। रास्ता न जानने की वजह से उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। अकबर बादशाह ने उनकी बड़ी आवभगत की। कुछ दिन आनन्द लेकर पीर साहब मक्का लौट गए।

ज्ब पीर साहब चले गए तो अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा - 'बीरबल! क्या तुम्हारे भी कोई गुरू हैं, जैसे कि मेरे पीर साहब हैं? यदि हैं तो वे कहां रहते हैं, कभी आते-जाते भी हैं या नहीं?'

बीरबल ने जवाब दिया - 'जहांपनाह! मेरे भी गुरू हैं, लेकिन वह बाहर रहते हैं कहीं आते-जाते नहीं। हाल ही मैंने सुना है कि मेरे गुरूदेव किसी को कुछ बताते भी नहीं और कभी किसी से एक पैसा भी नहीं लेते। रूपये-पैसे का उन्हें लोभ नहीं है।'

यह सुनकर बीरबल के गुरू के प्रति अकबर बादशाह के मन में श्रद्धा उत्पन्न हुई और उन्होंने बीरबल से अपने गुरू से मिलवाने का आग्रह किया।

अकबर बादशाह से बातें करके जब बीरबल रासते में आए तो उन्होंने देखा कि लकड़ी बेचने वाले एक बूढ़े ने परिश्रम करके लकड़ियों का एक गठ्टर बांधा हुआ है। वह सुबह से शाम तक इधर-उधर भटका, पर किसी ने भी उसे उचित मूल्य देकर वह गठ्टर नहीं खरीदा। लाचार होकर बूढ़ा लकड़हारा गठ्टर अपने धर वापस लिए जा रहा था।

पहले तो बीरबल ने उस लकड़ी बेचने वाले से लकड़ियों के उस गठ्टर का मूल्य पूछा, फिर उसे अपने घर ले गए और उससे बोले - 'मालूम होता है कि तुम समय के कुच्रक में फसकर इस दीन अवस्था में पहुंचे हो।'

बीरबल ने उसे अच्छे साफ-सुथरे वस्त्रों और काली जटा इत्यादि से युक्त ब्राहाम्ण साधु बना दिया। उसके हाथ में रूद्राक्ष की माला दे दी। फिर एक बड़े मंदिर के पीछे मृगचर्म के आसन पर बैठाकर उससे बोला - 'तुमसे मिलने बड़े-बड़े अमीर-उमराव आएंगे, पर उनसे तुम बिल्कुल मत बोलना। तुम्हें कितनी ही बहुमूल्य वस्तुएं वे क्यों न दिखाएं, पर  तुम उनकी तरफ आंख भी मत उठाना। तुमसे जो कुछ भी पूछें, उसका जवाब मत देना। बस अपने ध्यान में रहना और सिर्फ माला फेरते रहना। ध्यान रहे, यदि इसके अलावा तुमने कोई भी हरकत की तो तुम्हारी खैर नहीं, क्योंकि मैं तुम्हारी हरकतों को देखता रहूंगा।'

बूढ़े लकड़हारे ने बीरबल की बातों को स्वीकार कर लिया। जब बीरबल को यकीन हो गया कि वह भलीभांति स्वांग कर सकता है, तब वह अकबर बादशाह के पास दरबार में गए। दरबार में उस समय सभी दरबारी उपस्थित थे। बीरबल ने अकबर बादशाह को अपने गुरू के आने की शुभ सूचना दी और कहा - 'पहले तो गुरूदेव ने दर्शन देने से इन्कार किया, पर मेरे खुशामद करने पर वह पधारे हैं, और मन्दिर के पिछले हिस्से में आसन जमाए हुए हैं। उन्होंने आप लोगों को दर्शन देना भी स्वीकार कर लिया है। लेकिन मुझे साथ आने को मना कर दिया है। यदि मैं हठ करके जाऊंगा तो हो सकता है, वह मुझे शाप दे दें। अतः आप और लोगों के साथ उनके दर्शन करने के लिए जा सकते हैं।'

बीरबल को छोड़कर अकबर बादशाह के साथ सभी दरबारी गुरूदेव के दर्शन करने के लिए गए। अकबर बादशाह ने गुरूदेव के सामने जाकर सादर मस्तक झुकाया। फिर बैठकर उनसे पूछा - 'गुरूजी! अपना निवास स्थान तथा शुभ नाम इस दास को भी बताने की कृपा करें।'

गुरूदेव भी किसी ऐसे-वैसे के चेले नहीं थे। अकबर बादशाह की बातें सुनी-अनसुनी करके वह अपने ध्यान में ही रहे।

अकबर बादशाह फिर बोले - 'भगवन! मैं सारे हिंदुस्तान का बादशाह हूं और आपकी प्रत्येक इच्छा पूर्ण करने में समर्थ हूं। आप कृपा करके एक बार मेरी ओर नजर उठाकर देख लें तो मैं आपको धन्य समझूंगा।'

इस पर भी जब गुरूदेव ने ध्यान नहीं दिया तो अकबर बादशाह ने दस हजार रूपये मूल्य का कड़ा, जिसे वह स्वयं पहने हुए थे, हाथ से उतारकर गुरूदेव के चरणों में यह सोचकर रख दिया कि लालच में शायद कुछ आशीर्वाद देकर इस बहुमूल्य कड़े को स्वीकार कर लें। परंतु जब कुछ नतीजा न निकला तो निराश होकर अकबर बादशाह वहां से उठ खड़े हुए और बोले - 'जो आदमी अतिथि के साथ ऐसा व्यवहार करे, उस कठोर हद्य से बातें करना भी मूर्खता है।'

अकबर बादशाह को क्या पता था कि ऐसे मूर्ख से सामना होगा। उन्होंने वह कड़ा बीरबल के यहां भिजवा दिया, क्योंकि दान की वस्तु बादशाह के महल में कैसे आ सकती थी।

अगले दिन गुरूदेव का सारा हाल सुनाकर अकबर बादशाह ने बीरबल सक पूछा - 'मूर्ख मिले तो क्या करना चाहिए।'

बीरबल बोले - 'उस समय चुप रहना ही अच्छा है।'

बीरबल के इस जवाब से अकबर बादशाह की रही सही मर्यादा पर भी पानी पड़ गया। उनका विचार था कि ऐसी बात कहकर वह बीरबल के गुरू को मूर्ख साबित करेंगे, पर उल्टे खुद मूर्ख बने।

अकबर बादशाह को चुप देखकर बीरबल बोले - 'जब मैंने पहले ही उनका स्वभाव आपको बता दिया था कि उन्हें रूपये-पैसे का लालच नहीं है, कभी किसी के दरवाजे पर वह नहीं जाते, और मेरे कहने पर बड़ी मुश्किल से तो वह मिलने को राजी हुए थे, फिर आपने उन्हें लालच क्यों दिया? आपने अपशब्द कहकर गुरू का अपमान किया है। आपको धन-दौलत का घमंड है, इसलिए वह आपसे नहीं बोले।'

बीरबल की बात सुनकर अकबर बहुत लज्जित हुए।

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