संतुलित जीवन से ही चित्त को शांति


moral hindi story
अमेरिका के उघोगपपि एंड्रयू कार्नेगी अरबपति थे। ज बवह मरने को थे तो उन्होंने अपने सेक्रेटरी से पूछा - 'देख, तेरा-मेरा जिंदगीभर का साथ है। एक बात मैं बहुत दिनों से पूछना चाहता था। ईश्वर को साक्षी मानकर सच बताओ कि अगर अंत समय परमात्मा तुझसे पूछे कि तू कार्नेगी बनना चाहेगा या सेक्रेटरी, तो तू क्या जवाब देगा?'


सेक्रेटरी ने बेबाक उत्तर दिया- 'सर! मैं तो सेक्रेटरी ही बनना चाहूंगा।' अरबपति कार्नेगी बोले- 'क्यों?' इस पर सेक्रेटरी ने कहा- 'मैं आपको 40 साल से देख रहा हूं । आप दफ्तर में चपरासियों से भी पहले आ धमकते हैं और सबके बाद जाते हैं। आपने जितना धन आदि इकट्ठा कर लिया उससे अधिक के लिए निरंतर चिंतित रहते हैं। आप ठीक से खा नहीं सकते, रात को सो नहीं सकते। मैं तो स्वयं आपसे पूछने वाला था कि आप दौड़े बहुत, लेकिन पहुंचे कहां? यह क्या कोई सार्थक जिंदगी है? आपकी लालसा, चिंता और संताप देखकर ही मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि हे भगवान!  तेरी बड़ी कृपा, जो तूने मुझे एंड्रयू कार्नेगी नहीं बनाया।'



यह सुनकर कार्नेगी ने अपने सेक्रेटरी से कहा - 'मेरे मरने के बाद तुम अपना निष्कर्ष सारी दुनिया में प्रचारित कर देना। तुम सही कहते हो। मैं धनपति कुबेर हूं लेकिन काम से फुर्सत ही नहीं मिली-बच्चों को समय नहीं दे पाया, पत्नी से अपरिचित ही रह गया, मित्रों को दूर ही रखा, बस अपने साम्राज्य को बचाने-बढ़ाने की निरंतर चिंता। अब लग रहा है कि यह दौड़ व्यर्थ थी।' कल ही मुझसे किसी ने पुछा था, ‘क्या तुम तृप्त होकर मर पाओगे?' मैंने उत्तर दिया- 'मैं मात्र दस अरब डॉलर छोड़कर मर रहा हूं। सौ खरब की आकांक्षा थी, जो अधूरी रह गई।'

सबकः

यह उदाहरण उन लोगों के लिए शिक्षाप्रद सिद्ध हो सकता है, जो पाश्चात्य संस्कृति की दौड़ में धन की लालसा लिए चिंता, भय, तनाव, ईर्ष्या आदि जैसे मनोरोगों से ग्रसित होकर सार्थक जीवन के वास्तविक आनंद से वंचित हो रहे हैं। कार्नेगी के सेक्रेटरी की भांति उत्तम चरित्र वाले व्यक्ति पॉजिटिव लाइफ में विश्वास करते हैं, जिससे उनका जीवन संतुलित रहता है, क्योंकि वे जानते हैं कि वर्तमान में ही भावी जीवन का निर्माण होता है और इसके लिए धन संचय की प्रवृत्ति निर्मूल है।

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