मनमा इमोशन जागे Manma Emotion Jaage Hindi Lyrics – Dilwale

गोरिया रे चोरिया रे
गोरिया रे चोरिया रे
तेरा जलवा देखा तो दिल हुआ मिल्खा
बड़ी तेज़ भागे रे
मनमा इमोशन जागे रे
मनमा इमोशन जागे
मनमा इमोशन जागे रे
मनमा इमोशन जागे
दिल जगह से हिल गया रे
दिल जगह से हिल गया रे
टुकडों में निकला रे दिल का चिल्का
तूने फेंका खा के रे
मनमा इमोशन जागे रे
मनमा इमोशन जागे
मनमा इमोशन जागे रे
मनमा इमोशन जागे
हैया मेरा देसी typical सैयां
पीपल की ठंडी छैंया
में नाचे ता ता थैया
थैया दैया दैया 
मेरा देसी typical सैयां
पीपल की ठंडी छैंया
में नाचे ता ता थैया
थैया दैया दैया
ओ मेरे सैयां, सैयां सैयां 
दिल की फंसी है नैया मजधार में
सुन ले विस्तार में
हो लुट गया प्यार में
ये तो बता दे मेरे जज़्बात का
इतना कम रेट क्यूँ है तेरे बाज़ार में 
करके वादा क्यूँ ना आई
करके वादा क्यूँ ना आई
हुआ दिल का जगराता
हल्का-पुल्का सा धोखा खा के
मनमा इमोशन जागे रे
मनमा इमोशन जागे
मनमा इमोशन जागे रे
मनमा इमोशन जागे

जबरा फैन Jabra Fan Song Lyrics in Hindi – Shahrukh Khan | FAN

  • HINDI LYRICS OF JABRA FAN:

    • फॉलो करूँ ट्विटर पे 
      टैग करूँ फेसबुक पे 
      तेरे क्विज में गूगल को बीट कर दिया 
      मिरर में तू दिखता है 
      नींद में तू टिकता है 
      तेरे मैडनेस मुझे ढीट कर दिया 
      तू है सोडे के बोतल 
      मैं बनता तेरा 
      मैं तो हैंडल करूँ 
      हर ताँता तेरा 
      मेरे दिल के मोबाइल का तू 
      अनलिमिटेड प्लान हो गया 
      मैं तेरा हाय रे जबरा
      होए रे जबरा फैन हो गया 
      मैं तेरा हाय रे जबरा
      होए रे जबरा फैन हो गया 
      ओ तुझे देखते ही 
      दिल में धन ते नन हो गया
      मैं तेरा हाय रे जबरा
      होए रे जबरा फैन हो गया 
      मैं तुझपे, करी पीएचडी
      मेरा लक मेरा हक़, तू ही ओनली वजह 
      मैं तो सच्ची, हो जाऊं टची 
      कोई तेरे जो बारे में बोले बुरा 
      तेरा यार हाय 
      मुझको बुखार हाय 
      जाने सारी कॉलोनी में 
      तेरे लिए इनसेन हो गया 
      मैं तेरा हाय रे जबरा
      होए रे जबरा फैन हो गया 
      मैं तेरा हाय रे जबरा
      होए रे जबरा फैन हो गया 
      ओ तुझे देखते ही 
      दिल में धन ते नन हो गया
      मैं तेरा हाय रे जबरा 
      होए रे जबरा फैन हो गया
      स्टाइल तेरा फटते हैं 
      तुझपे खेले सट्टे हैं 
      तुझसे ही wifi कनेक्शन जुड़ा
      तेरे तक जो आती है 
      लाइन सारी काफी है 
      कोई कितना भी रोके
      मैं तो ना रुका 
      तूने जो जो कहा, मैंने डिट्टो किया 
      कभी जेब में रखा 
      कभी दिल पे लिया 
      तेरी आँखों की गर्मी में 
      सर से पैर तक फैन हो गया
      मैं तेरा..
      ओह तेरा ओह तेरा..
      फैन हो गया 
      मैं तेरा हाय रे जबरा
      होए रे जबरा फैन हो गया 
      ओ तुझे देखते ही 
      दिल में धन ते नन हो गया
      मैं तेरा हाय रे जबरा
      होए रे जबरा फैन हो गया

तो डिशूम Toh Dishoom (Title Song) Hindi Lyrics

HINDI LYRICS OF TOH DISHOOM:

मुझे याद है वो बातें
मेरे बचपन की
डैडी कहते थे खोटा सिक्का
चलेगा नहीं
मम्मी प्यार से खिलाती
दाल चावल और दही
माँ के हाथों का वो जादू
फाइव स्टार में नहीं
मर मर के मिली कॉलेज डिग्री
मेरी जॉब एक ट्रेजेडी है जोक सैलरी
एक लड़की मिली थी
वो भी डंप कर गयी
डंप होने को बैठा हूँ
कोई मिले तो सही
बंदा सीधा रब दा मैं येह
डिट्टो तेरे वर्गा मैं
काम ग़लत कोई करदा ते
फिर ना उसको छडड़ा मैं
किसी लड़की को छेड़े कोई
तो डिशूम
करे चीटिंग और खेले कोई
तो डिशूम
मेरे इंडिया को बुरा कहा
तो डिशूम
जन गण पे ना खड़ा हुआ
तो डिशूम
तो डिशूम तो डिशूम तो डिशूम..
बाथरूम में किशोर दा के गाने गाता हूँ
केटी पैरी की मैं फोटो संग लेके नहाता हूँ
मेरे आजू बाजू बिकिनी में बेब्स नचदी
बट लाइफ कोई हनी सिंग का विडियो नहीं
दिन को मैं चाहे जितना भी हीरो होता हूँ
रात को तकिये की झप्पी लेके सोता हूँ
कभी कभी किसी पार्टी में ज्यादा हो गयी
तो याद करके बातें पुरानी खूब रोता हूँ
बंदा सीधा रब दा मैं
डिट्टो तेरे वर्गा मैं
एक वारी हाथ फाड़ लां तां
फिर कड़ी नहीं छडदा मैं
राम रहीम मिलाये कोई
तो डिशूम
छोटे बच्चों को डराये कोई
तो डिशूम
नशा करके जो आये कोई
तो डिशूम
मेरे भाई को सताये कोई
तो डिशूम
तो डिशूम तो डिशूम तो डिशूम
तो डिशूम तो डिशूम तो डिशूम..

गेरुआ Gerua Song Hindi Lyrics – Dilwale | SRK, KAJOL

LYRICS OF GERUA IN HINDI: 

धुप से निकल के
छाँव से फिसल के
हम मिले जहां पर
लम्हा थम गया 
आसमां पिघल गया
शीशे में ढल के
जम गया तो तेरा
चेहरा बन गया 
दुनिया भुला के तुमसे मिला हूँ
निकली है दिल से ये दुआ
रंग दे तू मोहे गेरुआ
रांझे की दिल से है दुआ
रंग दे तू मोहे गेरुआ
हाँ निकली है दिल से ये दुआ
हो रंग दे तू मोहे गेरुआ 
हो तुमसे शुरू.. तुमपे फ़ना
है सुफियान ये दास्तां
मैं कारवां मंज़िल हो तुम
जाता जहां को हर रास्ता 
तुमसे जुदा जो
दिल ज़रा संभल के
दर्द का वो सारा
कोहरा छन गया 
दुनिया भुला के तुमसे मिला हूँ
निकली है दिल से ये दुआ
रंग दे तू मोहे गेरुआ
हो रांझे की दिल से है दुआ
रंग दे तू मोहे गेरुआ
हो वीरान था, दिल का जहां
जिस दिन से दाखिल हुआ
इक जिस्म से है इक जान का
दर्ज़ा मुझे हासिल हुआ 
हाँ फीके सारे, नाते जहाँ के
तेरे साथ रिश्ता गहरा बन गया 
दुनिआ भुला के तुमसे मिला हूँ
निकली है दिल से ये दुआ
रंग दे तू मोहे गेरुआ
रांझे की दिल से है दुआ
रंग दे तू मोहे गेरुआ
हाँ निकली है दिल से ये दुआ
हो रंग दे तू मोहे गेरुआ 

कबीर दास जी के दोहे Part 2

कबीर दास जी के दोहे


दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों !
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
अर्थ : कबीर दस जी कहते हैं कि परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमे बस मेरा गुजरा चल जाये , मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूँ और आने वाले मेहमानो को भी भोजन करा सकूँ।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी,बहुरि करेगा कब ॥
अर्थ : कबीर दास जी समय की महत्ता बताते हुए कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और और जो आज करना है उसे अभी करो , कुछ ही समय में जीवन ख़त्म हो जायेगा फिर तुम क्या कर पाओगे !!
लूट सके तो लूट ले,राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछ्ताओगे,प्राण जाहि जब छूट ॥
अर्थ : कबीर दस जी कहते हैं कि अभी राम नाम की लूट मची है , अभी तुम भगवान् का जितना नाम लेना चाहो ले लो नहीं तो समय निकल जाने पर, अर्थात मर जाने के बाद पछताओगे कि मैंने तब राम भगवान् की पूजा क्यों नहीं की ।

माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख ।
माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख ॥
अर्थ : माँगना मरने के बराबर है ,इसलिए किसी से भीख मत मांगो . सतगुरु कहते हैं कि मांगने से मर जाना बेहतर है , अर्थात पुरुषार्थ से स्वयं चीजों को प्राप्त करो , उसे किसी से मांगो मत।

कबीर दास जी के दोहे / Kabir Ke Dohe







जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।

कबीर दास जी के दोहे / Kabir Ke Dohe

 बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ : जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला. जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है.



 पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ : बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा.
 साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।
अर्थ : इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है. जो सार्थक को बचा लेंगे और निरर्थक को उड़ा देंगे.
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
अर्थ : कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है. यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है !
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।
अर्थ : मन में धीरज रखने से सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे तब भी फल तो ऋतु  आने पर ही लगेगा !
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
अर्थ : कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती. कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो या  फेरो.
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ : सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए. तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का.
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।
अर्थ : यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह  दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत.
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
अर्थ : जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते  हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है. लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते.
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
अर्थ : यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है.
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
अर्थ : न तो अधिक बोलना अच्छा है, न ही जरूरत से ज्यादा चुप रहना ही ठीक है. जैसे बहुत अधिक वर्षा भी अच्छी नहीं और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं है.
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
अर्थ : जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ़ करता है.
दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार,
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।
अर्थ : इस संसार में मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है. यह मानव शरीर उसी तरह बार-बार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से पत्ता  झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं
लगता.
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर.
अर्थ : इस संसार में आकर कबीर अपने जीवन में बस यही चाहते हैं कि सबका भला हो और संसार में यदि किसी से दोस्ती नहीं तो दुश्मनी भी न हो !
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी  मुए, मरम न कोउ जाना।
अर्थ : कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है. इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।

New Kabir Ke Dohe Added

कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन.
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन.
अर्थ : कहते सुनते सब दिन निकल गए, पर यह मन उलझ कर न सुलझ पाया. कबीर कहते हैं कि अब भी यह मन होश में नहीं आता. आज भी इसकी अवस्था पहले दिन के समान ही है. 
              कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई.
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई.
अर्थ :कबीर कहते हैं कि समुद्र की लहर में मोती आकर बिखर गए. बगुला उनका भेद नहीं जानता, परन्तु हंस उन्हें चुन-चुन कर खा रहा है. इसका अर्थ यह है कि किसी भी वस्तु का महत्व जानकार ही जानता है।
           जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई.
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई.
अर्थ : कबीर कहते हैं कि जब गुण को परखने वाला गाहक मिल जाता है तो  गुण की कीमत होती है. पर जब ऐसा गाहक नहीं मिलता, तब गुण कौड़ी के भाव चला जाता है.
                                                      कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस.                                                    
 ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस. 

अर्थ : कबीर कहते हैं कि हे मानव ! तू क्या गर्व करता है? काल अपने हाथों में तेरे केश पकड़े हुए है. मालूम नहीं, वह घर या परदेश में, कहाँ पर तुझे मार डाले.
                       पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात.
एक दिना छिप जाएगा,ज्यों तारा परभात.
अर्थ : कबीर का कथन है कि जैसे पानी के बुलबुले, इसी प्रकार मनुष्य का शरीर क्षणभंगुर है।जैसे प्रभात होते ही तारे छिप जाते हैं, वैसे ही ये देह भी एक दिन नष्ट हो जाएगी.
                                   हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास.
            सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास.
अर्थ : यह नश्वर मानव देह अंत समय में लकड़ी की तरह जलती है और केश घास की तरह जल उठते हैं. सम्पूर्ण शरीर को इस तरह जलता देख, इस अंत पर कबीर का मन उदासी से भर जाता है. —
जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।
अर्थ : इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा. जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा.
झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद.
 खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद.
अर्थ : कबीर कहते हैं कि अरे जीव ! तू झूठे सुख को सुख कहता है और मन में प्रसन्न होता है? देख यह सारा संसार मृत्यु के लिए उस भोजन के समान है, जो कुछ तो उसके मुंह में है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है.
ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस.
भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस.
अर्थ : कबीर संसारी जनों के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न  मिला जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता.  —
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत
 चन्दन भुवंगा बैठिया,  तऊ सीतलता न तजंत।
अर्थ : सज्जन को चाहे करोड़ों दुष्ट पुरुष मिलें फिर भी वह अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता. चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता.
 कबीर तन पंछी भया, जहां मन तहां उडी जाइ.
 जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ.
अर्थ :कबीर कहते हैं कि संसारी व्यक्ति का शरीर पक्षी बन गया है और जहां उसका मन होता है, शरीर उड़कर वहीं पहुँच जाता है। सच है कि जो जैसा साथ करता है, वह वैसा ही फल पाता है.
तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई.
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ.
अर्थ : शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं.
कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय.
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय.
अर्थ : कबीर कहते हैं कि उस धन को इकट्ठा करो जो भविष्य में काम आए. सर पर धन की गठरी बाँध कर ले जाते तो किसी को नहीं देखा.
 —
माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर.
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर .
अर्थ : कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन. शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं.
  
मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.
 पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई.
अर्थ : मनुष्य मात्र को समझाते हुए कबीर कहते हैं कि मन की इच्छाएं छोड़ दो , उन्हें तुम अपने बूते पर पूर्ण नहीं कर सकते। यदि पानी से घी निकल आए, तो रूखी रोटी कोई न खाएगा.
 
जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही |
सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ||
अर्थ : जब मैं अपने अहंकार में डूबा था – तब प्रभु को न देख पाता था – लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया  – ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया.
 
कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी |
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ||
अर्थ : कबीर कहते हैं – अज्ञान की नींद में सोए क्यों रहते हो? ज्ञान की जागृति को हासिल कर प्रभु का नाम लो.सजग होकर प्रभु का ध्यान करो.वह दिन दूर नहीं जब तुम्हें गहन निद्रा में सो ही जाना है – जब तक जाग सकते हो जागते क्यों नहीं? प्रभु का नाम स्मरण क्यों नहीं करते ?
 
आछे / पाछे दिन पाछे गए हरी से किया न हेत |
अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ||
अर्थ : देखते ही देखते सब भले दिन – अच्छा समय बीतता चला गया – तुमने प्रभु से लौ नहीं लगाई – प्यार नहीं किया समय बीत जाने पर पछताने से क्या मिलेगा? पहले जागरूक न थे – ठीक उसी तरह जैसे कोई किसान अपने खेत की रखवाली ही न करे और देखते ही देखते पंछी उसकी फसल बर्बाद कर जाएं.
 
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ॥
अर्थ : रात नींद में नष्ट कर दी – सोते रहे – दिन में भोजन से फुर्सत नहीं मिली यह मनुष्य जन्म हीरे के सामान बहुमूल्य था जिसे तुमने व्यर्थ कर दिया – कुछ सार्थक किया नहीं तो जीवन का क्या मूल्य बचा ? एक कौड़ी –
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥
अर्थ: खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है और न ही उसके फल सुलभ होते हैं.  

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